राजस्थान के लोक देवता और देवियाँ
नमस्कार दोस्तों इस पोस्ट में हम आपको राजस्थान के प्रमुख लोक देवता के बारे मे विस्तार से समझायेंगे। इस पोस्ट में हम आपको राजस्थान के प्रमुख लोक देवता देवनारायण जी, पाबूजी, गोगाजी, मल्लीनाथ जी, रामदेव जी के बारे में अध्ययन करेंगे।
देवनारायण जी
- जन्म – आशीन्द (भीलवाडा) में हुआ।
- गुर्जर जाति के आराध्य देव है।
- गुर्जर जाति का प्रमुख व्यवसाय पशुपालन है।
- देवनारायण जी विष्णु का अवतार माने जाते है।
- मुख्य मेंला भाद्र शुक्ल सप्तमी को भरता हैं।
- देवनारायण जी के घोडे़ का नाम लीलागर था।
- प्रमुख स्थल- 1. सवाई भोज मंदिर (आशीन्द ) भीलवाडा में है। 2. देव धाम जोधपुरिया (टोंक) में है।
- उपनाम – चमत्कारी लोक पुरूष
- जन्म का नाम उदयसिंह थान
- देवधाम जोधपुरिया (टोंक) – इस स्थान पर सर्वप्रथम देवनारायणजी ने अपने शिष्यों को उपदेश दिया था।
- इनकी फंड राज्य की सबसे लम्बी फंड़ है।
- फंड़ वाचन के समय “जन्तर” नामक वाद्य यंत्र का उपयोग किया जाता है।
- देवनारायण जी के मंदिरों में एक ईंट की पूजा होती है।
- राजा जयसिंह की पुत्री पीपलदे से इनका विवाह हुआ।
पाबूजी
- जन्म – 13 वी शताब्दी (1239 ई) में हुआ।
- राठौड़ वंश में जोधपुर के फलोदी तहसील के कोलु ग्राम में हुआ।
- विवाह – अमरकोट के सूरजमल सोडा की पुत्री फूलमदे से हुआ।
- उपनाम – ऊंटों के देवता, प्लेग रक्षक देवता, राइका/रेबारी जाति के देवता आदि।
- राइका /रेबारी जाति का संबंध मुख्यतः सिरोही से है।
- मारवाड़ क्षेत्र में सर्वप्रथम ऊंट लाने का श्रेय पाबुजी को है।
- पाबु जी ने देवल चारणी की गायों को अपने बहनोई जिन्द राव खींचीं से छुडाया।
- इन्होने लोकगीत पवाडे़ कहलाते है। – माठ वाद्य का उपयोग होता है।
- इनकी फड़ राज्य की सर्वाधिक लोकप्रिय फड़ है।
- इनकी जीवनी “पाबु प्रकाश” आंशिया मोड़ जी द्वारा रचित है।
- इनकी घोडी का नाम केसर कालमी है।
- पाबु जी का गेला चैत्र अमावस्या को कोलू ग्राम में भरता है।
- पाबु जी की फड़ के वाचन के समय “रावणहत्था” नामक वाद्य यंत्र उपयोग में लिया जाता है।
- प्रतीक चिन्ह – हाथ में भाला लिए हुए अश्वारोही।
गोगाजी
- जन्म स्थान – ददरेवा (जेवरग्राम) राजगढ़ तहसील (चुरू)।
- समाधि – गोगामेड़ी, नोहर तहसील (हनुमानगढ)
- उपनाम – सांपों के देवता, जाहरपीर (यह नाम महमूद गजनवी ने दिया)
- इनका वंश – चैहान वंश था।
- गोगा जी ने महमूद गजनवी से युद्ध लडा।
- प्रमुख स्थल:-श्शीर्ष मेडी ( ददेरवा),घुरमेडी – (गोगामेडी), नोहर मे।
- गोगा मेंडी का निर्माण “फिरोज शाह तुगलक” ने करवाया।
- वर्तमान स्वरूप (पुनः निर्माण) महाराजा गंगा सिंह नें कारवाया।
- मेला भाद्र कृष्ण नवमी (गोगा नवमी) को भरता है।
- इस मेले के साथ-साथ राज्य स्तरीय पशु मेला भी आयोजित होता है।
- यह पशु मेला राज्य का सबसे लम्बी अवधि तक चलने वाला पशु मेला है।
- हरियाणवी नस्ल का व्यापार होता है।
- गोगा मेडी का आकार मकबरेनुमा हैं
- गोगाजी की ओल्डी सांचैर (जालौर) में है।
- इनके थान खेजड़ी वृक्ष के नीचे होते है।
- गोरखनाथ जी इनके गुरू थे।
- घोडे़ का रंग नीला है।
- गोगाजी हिन्दू तथा मुसलमान दोनों धर्मो में समान रूप से लोकप्रिय थे।
- धुरमेडी के मुख्य द्वार पर “बिस्मिल्लाह” अंकित है।
- इनके लोकगाथा गीतों में डेरू नामक वाद्य यंत्र बजाया जाता है।
- किसान खेत में बुआई करने से पहले गोगा जी के नाम से राखड़ी “हल” तथा “हाली” दोनों को बांधते है।
मल्लीनाथ जी
- जन्म – तिलवाडा (बाडमेर) में हुआ। जाणीदे – रावल सलखा (माता -पिता)
- इनका मेला चेत्र कृष्ण एकादशी से चैत्र शुक्ल एकादशी तक भरता है।
- इस मेले के साथ-साथ पशु मेला भी आयोजित होता है।
- थारपारकर व कांकरेज नस्ल का व्यापार होता है।
- मल्ली नाथ जी के नाम से ही बाडमेर क्षेत्र का नाम मालाणी क्षेत्र पडा।
रामदेव जी
- जन्म- उपडुकासमेर, शिव तहसील (बाड़मेर) में हुआ।
- रामदेव जी तवंर वंशीय राजपूत थे।
- पिता का नाम अजमल जी व माता का नाम मैणादे था।
- इनकी ध्वजा, नेजा कहताली हैं
- नेजा सफेद या पांच रंगों का होता हैं
- बाबा राम देव जी एकमात्र लोक देवता थे, जो कवि भी थे।
- राम देव जी की रचना ” चैबीस बाणिया” कहलाती है।
- रामदेव जी का प्रतीक चिन्ह “पगल्ये” है।
- इनके लोकगाथा गीत ब्यावले कहलाते हैं।
- रामदेव जी का गीत सबसे लम्बा लोक गीत है।
- इनके मेघवाल भक्त “रिखिया ” कहलाते हैं
- “बालनाथ” जी इनके गुरू थे।
- प्रमुख स्थल- रामदेवरा (रूणिया), पोकरण तहसील (जैसलमेर)
- बाबा रामदेव जी का जनम भाद्रशुक्ल दूज (बाबेरी बीज) को हुआ।
- राम देव जी का मेला भाद्र शुक्ल दूज से भाद्र शुक्ल एकादशी तक भरता है।
- मेले का प्रमुख आकर्षण ” तरहताली नृत्य” होता हैं।
- मांगी बाई (उदयपुर) तेरहताली नृत्य की प्रसिद्ध नृत्यागना है।
- तेरहताली नृत्य कामड़ सम्प्रदाय की महिलाओं द्वारा किया जाता है।
- रामदेव जी श्री कृष्ण के अवतार माने जाते है।
- तेरहताली नृत्य व्यावसासिक श्रेणी का नृत्य है।
- छोटा रामदेवरा गुजरात में है।
- सुरताखेड़ा (चित्तोड़) व बिराठिया (अजमेर) में भी इनके मंदिर है।
- इनके यात्री ‘जातरू’ कहलाते है।
- रामदेव जी हिन्दू तथा मुसलमान दोनों में ही समान रूप से लोकप्रिय है।
- मुस्लिम इन्हे रामसापीर के नाम से पुकारते है।
- इन्हे पीरों का पीर कहा जाता है।
- जातिगत छुआछूत व भेदभाव को मिटाने के लिए रामदेव जी ने “जम्मा जागरण ” अभियान चलाया।
इनके घोडे़ का नाम लीला था। - रामदेव जी ने मेघवाल जाति की “डाली बाई” को अपनी बहन बनाया।
- इनकी फड़ का वाचन मेघवाल जाति या कामड़ पथ के लोग करते है।
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